मैं कांशी राम बोल रहा हूँ

600.00

Shipping calculated at checkout

मैं कांशी राम बोल रहा हूँ’ पुस्तक कांशी राम जी से जुड़े अफसानों से भरी है. एक बीज के अंकुरित होने से लेकर एक विशाल वृक्ष में परिवर्तित होने की दास्ताँ है. यह पुस्तक अच्छे-बुरे मौसमों के मिजाज को समझकर, विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने का रास्ता बनाने और जुर्रत के साथ डटकर खड़े रहने की इबारत है. लेकिन यह मानवीयता का एक कोमल स्पर्श भी है, जिसकी चाहत हमारे पूर्वजों ने ‘बेगमपुरा’ के ख्वाब के रूप में की थी.

कैडर-कैंपस के ज़रिये कांशी राम जी ने हज़ारों/लाखों कार्यकर्ताओं को पैदा किया. उनके मस्तिष्क में आन्दोलन की सलाहियत फूँकी. उन्हें इतिहास की सटीक जानकारियाँ दीं. मौजूदा हालातों में आंदोलन को कैसे चलाना है, कैसे कामयाब करना है, कार्यकर्ताओं को कांशी राम जी ने सिखाया. भारत की पूरी ज़मीन ही कांशी राम जी की कर्मभूमि रही है. इस कर्मभूमि पर उनके आंदोलनों व् कार्यों की बरसात से वातावरण में जो ताज़गी आई है वह पूरी तरह अनोखी है. भारत के इतिहास में ऐसा आज तक नहीं हुआ है. ज़ाहिर है कांशी राम जी की सोच व् कार्य करने की पद्धति भी अलग रही होगी. यह सभी अनुभव एक पाठक को महसूस होंगे इस पुस्तक के ज़रिये. कांशी राम जी के आन्दोलन के सफ़र को नापना आसान काम नहीं. लेखक पम्मी लालोमज़ारा ने कड़ी मेहनत और धैर्य के साथ पुस्तक को अंजाम दिया है. यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि एक आंदोलनकारी के लिए यह पुस्तक पढ़ना बेहद ज़रूरी है.

मैं कांशी राम बोल रहा हूँ’ पुस्तक कांशी राम जी से जुड़े अफसानों से भरी है. एक बीज के अंकुरित होने से लेकर एक विशाल वृक्ष में परिवर्तित होने की दास्ताँ है. यह पुस्तक अच्छे-बुरे मौसमों के मिजाज को समझकर, विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने का रास्ता बनाने और जुर्रत के साथ डटकर खड़े रहने की इबारत है. लेकिन यह मानवीयता का एक कोमल स्पर्श भी है, जिसकी चाहत हमारे पूर्वजों ने ‘बेगमपुरा’ के ख्वाब के रूप में की थी.

कैडर-कैंपस के ज़रिये कांशी राम जी ने हज़ारों/लाखों कार्यकर्ताओं को पैदा किया. उनके मस्तिष्क में आन्दोलन की सलाहियत फूँकी. उन्हें इतिहास की सटीक जानकारियाँ दीं. मौजूदा हालातों में आंदोलन को कैसे चलाना है, कैसे कामयाब करना है, कार्यकर्ताओं को कांशी राम जी ने सिखाया. भारत की पूरी ज़मीन ही कांशी राम जी की कर्मभूमि रही है. इस कर्मभूमि पर उनके आंदोलनों व् कार्यों की बरसात से वातावरण में जो ताज़गी आई है वह पूरी तरह अनोखी है. भारत के इतिहास में ऐसा आज तक नहीं हुआ है. ज़ाहिर है कांशी राम जी की सोच व् कार्य करने की पद्धति भी अलग रही होगी. यह सभी अनुभव एक पाठक को महसूस होंगे इस पुस्तक के ज़रिये. कांशी राम जी के आन्दोलन के सफ़र को नापना आसान काम नहीं. लेखक पम्मी लालोमज़ारा ने कड़ी मेहनत और धैर्य के साथ पुस्तक को अंजाम दिया है. यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि एक आंदोलनकारी के लिए यह पुस्तक पढ़ना बेहद ज़रूरी है.

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “मैं कांशी राम बोल रहा हूँ”

Your email address will not be published. Required fields are marked *